मैं शरीर हूं ऐसा मानने की सिद्धि हो गई है।
मैं शरीर नहीं हूं इसका ज्ञान पकड़ में नहीं आ रहा।
इसे ऐसे समझते हैं।
यदि हम कहे हम शरीर हैं तो सो जाने के बाद क्या होता है ? जब स्वप्न होता है वहां पर सूक्ष्म शरीर होता है जो स्वप्न लोक में विचरण करता है। जागने के बाद कहते हैं मैंने सपना देखा, लेकिन तुम तो यहां सोए थे??
तो तुम यह शरीर वाले हो या वह शरीर वाले ?
तो स्वप्न में हम इस शरीर को छोड़ देते हैं और इस शरीर की याद नहीं रहती है ।और जागृत में आने पर वह शरीर छूट जाता है तो केवल याद में स्वप्न लोक रह जाता है। अर्थात स्वप्न में सूक्ष्म शरीर जब छूटा है तब मैं जो जागृत हुआ तब स्वप्न याद में रहा।
विचार करें तब कि आप कौन हैं ??
जब शरीर में से जीव निकल जाता है तो शरीर शव बन जाता है। कोई नहीं कहता कि अभी यह मेरा पुत्र है, भाई है ,मित्र है। उसे लोग वे शव के रूप में देखते हैं।
तो जो अभी जीव है तभी तक शरीर और जिसके हटते ही आप शरीर रह जाते हैं।चेतन नहीं है । सूक्ष्म शरीर इस शरीर को छोड़कर के अन्य लोगों में चला जाता है ।अन्य योनियों में कर्म अनुसार चला जाता है। ना तो आप यह शरीर हुए ना ही आप स्वप्नलोक वाले शरीर। उदाहरण जब आप नींद में चले गए तो शरीर के कष्ट का अनुभव भी नहीं होता है ।जागृत में कष्ट का अनुभव होता है ।नींद में भूल गए ।और जागे तो कष्ट वैसा का वैसा है। तो उस समय फिर से शरीर के कष्ट का अनुभव होने लगता है।
इसका तात्पर्य है कि हम ना यह शरीर है ना ही सूक्ष्म शरीर हैं। तो हम कौन हैं ?? हम आत्मा हैं जो परमात्मा का अंश है ।
ईश्वर अंस जीव अविनाशी,
चेतन अमल सहज सुखरासी